बोकारो। सुप्रसिद्ध गायक व कवि अरुण पाठक की माता धर्मपरायणा व संगीत अनुरागी स्व. सागरि देवी की पहली पुण्यतिथि पर शुक्रवार की शाम सेक्टर 6 में संगीत संध्या का आयोजन किया गया। कलाकारों ने भक्ति व सुगम संगीत की प्रस्तुति से उन्हें सुरमयी श्रद्धांजलि दी। सर्वप्रथम सागरि देवी की तस्वीर पर उनके पति कमल कान्त पाठक, बेटे अरुण पाठक, अवधेश पाठक, बहू जयंती पाठक, संगीतज्ञ डाॅ राकेश रंजन, रमण कुमार, श्रीमोहन झा आदि ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
अरुण पाठक ने कहा कि मां ने संगीत व साहित्य के लिए सदैव प्रोत्साहित किया। मां मंच की कलाकार नहीं थीं लेकिन घर के उत्सवों में वह लोकगीत गाती थीं। संगीत से उनका गहरा लगाव था। उनके मन में किसी के लिए बैर नहीं था। सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना रखती थीं। उनके निधन को एक वर्ष पूरे हो गए लेकिन उनकी याद सदैव साथ है। जयंती पाठक ने कहा कि उनकी दी हुई सीख हमेशा याद रखने योग्य हैं। अवधेश पाठक ने कहा कि उनकी कमी हमेशा खलेगी।
डाॅ राकेश रंजन ने कहा कि मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत चाचीजी के मन में कलाकारों के प्रति विशेष सम्मान था। उनसे प्राप्त स्नेह उन्हें आजीवन याद रहेगा।
इस अवसर पर अरुण पाठक ने महाकवि विद्यापति की रचना मैथिली में भगवती वंदना ‘जय-जय भैरवि असुर भयाउनि…’, ‘माधव कते तोर करब बड़ाई…’, हिन्दी गीत ‘दुनियां से जानेवाले जाने चले जाते हैं कहां…’, ‘सुबह ना आई शाम ना आई जिस दिन तेरी याद ना आई…’, ‘जब-जब बहार आई…’, ’पूजा के हेतु शंकर आयल छी हम पुजारी…’ व अन्य गीत, रमण कुमार ने ‘सुख के सब साथी…’, अक्षिता पाठक व आंचल पाठक ने ‘चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए…’, ‘ये रामायण है पुण्यकथा श्रीराम की…’ व ‘जगदंब अहीं अवलंब हमर हे माय अहां बिनु आस ककर…’, जयंती पाठक ने ‘माधव तोहे जन जाह विदेस..’ की सुमधुर प्रस्तुति से उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। तबले पर डाॅ राकेश रंजन व उनके शिष्य विवेक पाठक ने अच्छी संगति की।