
अरुण पाठक ने कहा कि किशोर कुमार बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। पार्श्वगायन के साथ ही उन्होंने अभिनय, फिल्म निर्माण-निर्देशन आदि में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। सत्तर के दशक में किशोर कुमार पार्श्वगायन के सिरमौर बन गये थे। उनके गाए गीत आज भी काफी लोकप्रिय हैं। रमण चैधरी ने कहा कि किशोर दा खासकर मस्ती भरे गीतों के लिए जाने जाते हैं।
इस मौके पर अरुण पाठक ने ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मकाम वो फिर नहीं आते…’, ‘मेरे नैना सावन भादो फिर भी मेरा मन प्यासा…’, ‘वो शाम कुछ अजीब थी ये शाम भी अजीव है…’, ‘हाल क्या है दिलों का ना पूछो सनम…’ व ‘जीवन से भरी तेरी आंखें मजबूर करें जीने के लिए…’ सुनाकर समां बांध दिया। रमण चौधरी ने ‘हवाओं पे लिख दो…’, ‘सपनों के शहर..’, ‘खई के पान बनारस वाला…’, अमोद श्रीवास्तव ने ‘चेहरा है या चांद खिला है..’, ‘मेरे दिल ने तड़प के…’, ‘तू रूठा दिल टूटा…’, ‘दिल में आग लगाए…’, सुभाष राजहंस ने ‘मेरा जीवन कोरा कागज…’, ‘मेरी भीगी भीगी सी..’ व ‘राम का नाम बदनाम ना करो…’ की सुमधुर प्रस्तुति से किशोर दा को श्रद्धांजलि दी।