केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेन्द्र सिंह ने आज बेंगलुरु में हाल ही में गठित इस्पात मंत्रालय की राष्ट्रीय इस्पात उपभोक्ता परिषद की अध्यक्षता की। बेंगलुरु कर्नाटक के साथ–साथ दक्षिणी क्षेत्र के पड़ोसी राज्यों के लिए भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इस बैठक में मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय के सचिव-नामित बिनॉय कुमार ने भाग लिया। इसके साथ ही बैठक में राज्य सरकार के अधिकारी और उद्योग के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।
इस सभा में, स्टील मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रम एमएसटीसी के मोबाइल ऐप एम-3 (एमएसटीसी मेटल मंडी) लॉन्च किया गया, जो खरीदार को विक्रेता के करीब लाने का काम करेगा। इसके साथ ही यह मुख्य रूप से छोटे खरीदारों की समस्याओं को दूर करेगा। यह डिजिटल इण्डिया के तहत भारत सरकार की योजना के रूप में शुरू की गई है।
इस बैठक को संबोधित करते हुए, श्री सिंह ने वैश्विक इस्पात उद्योग में भारत की स्थिति को रेखांकित किया और बताया कि भारत में इस्पात की मांग में वृद्धि की अपार संभावना है क्योंकि भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात की खपत महज 68 किलोग्राम है जो वैश्विक औसत 208 किलोग्राम प्रति व्यक्ति के मुक़ाबले एक तिहाई है।
ऐसे में इस्पात उपभोक्ता परिषद जैसे मंचों की भूमिका बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण है। इस मंच पर उत्पादक और उपभोक्ता दोनों एक साथ मिलकर इनोवेटिव और आउट ऑफ द बॉक्स आइडियाज़ के साथ इस्पात उद्योग को आगे ले जाने के लिए काम करते हैं। इस्पात की मांग, आपूर्ति, उत्पाद नवाचारों और लॉजिस्टिक्स जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श की आवश्यकता है। लॉजिस्टिक्स एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और उपभोक्ता परिषद को नीति निर्माताओं का जल्द-जल्द इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए लॉजिस्टिक्स का संभावित रोडमैप तैयार करना होगा। देश में प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास योजना और रक्षा की जरूरतों महत्वपूर्ण पहल क चलते मूल्यवर्धित और परिष्कृत ग्रेड स्टील की मांग बढ़ने की उम्मीद है। अनुसंधान और विकास तथा इनोवेशन की जरूरतों को पूरा करने के लिए, इस्पात मंत्रालय ने स्टील रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी मिशन ऑफ इण्डिया की स्थापना की है।
‘मेक इन इंडिया’ और ‘प्रधान मंत्री आवास योजना (2022 तक सभी के लिए आवास)’ जैसी पहलों से देश भर में स्टील की मांग बढ़ने की उम्मीद है। किसी सरकारी खरीद में परियोजना की लाइफ सायकल कॉस्ट को एक निर्धारक बनाने के लिए सरकार ने नीतिगत बदलाव जैसे सामान्य वित्तीय नियमों (जीएफआर) में संसोधन किया है। राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 की अधिसूचना में 2030-31 तक इस्पात उत्पादन क्षमता 3000 लाख टन प्रति वर्ष हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके साथ ही सरकारी खरीद में घरेलू रूप से उत्पादित लौह और इस्पात उत्पादों को प्राथमिकता देने की अभूतपूर्व नीति लागू की गई है। इसके अलावा सरकार की बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ज़ोर से इस्पात की मांग बढ़ना तय है।
इस्पात भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 2% योगदान देता है। भारतीय अर्थव्यवस्था विकास के पथ पर अग्रसर है। सरकार ने बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया है, जो सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को बढ़ाएगा। इस्पात आधारित संरचनाओं के लाभों जैसे लाइफ सायकल कॉस्ट, हाई डिज़ाइन फ्लेक्सिबिलिटी विथ बेटर एस्थेस्टिक्स को ध्यान में रखते हुए इस्पात बुनियादी संरचना के विकास के लिए प्रमुख निर्माण सामग्री है। सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों जैसे 100 स्मार्ट सिटीज मिशन, सभी के लिए आवास, अटल मिशन रिजूवनैशन एंड अर्बन ट्रांसफॉरमेशन, रेलवे अपग्रेडेशन और रक्षा क्षेत्र का आधुनिकीकरण में घरेलू इस्पात के इस्तेमाल होने की संभावना है।
सरकार की कुछ प्रमुख क्षेत्रों में पहल करने की योजना से भारत के मौजूदा सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की गति तेज होने की उम्मीद है, जो अंततः लघु से मध्यम अवधि में घरेलू इस्पात मांग बढ़ाने पर बल देगी। इस्पात उद्योग और उपयोगकर्ताओं को पहाड़ी क्षेत्रों में क्रेश बैरियर, रेलवे, ऊर्जा और चिकित्सा उद्देश्यों के लिए विशेष ग्रेड के इस्पात विकास इत्यादि के लिए इस्पात उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।