मैं सभी की खैरियत और सबका सलाम चाहता हूं…

# बोकारो में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कवियों ने प्रस्तुतियों से बांधा समां

बोकारो: सेक्टर 4 स्थित मिथिला एकेडमी पब्लिक स्कूल के सभागार में रविवार को राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन संपन्न हुआ। कला, साहित्य व जनसेवा के क्षेत्र में सक्रिय सारथी परिवार के सौजन्य से बोकारो के कवि अरुण पाठक की अध्यक्षता, कवयित्री करुणा कलिका के संयोजन व रायबरेली से आये सुप्रसिद्ध कवि गोविंद गजब के कुशल संचालन में आयोजित इस राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में हिन्दी काव्य मंचों के सुप्रसिद्ध कवि बादशाह प्रेमी (देवरिया, उत्तर प्रदेश), पवन बांके बिहारी (पश्चिम बंगाल), राकेश ओझा (आरा, बिहार), सरोज झा झारखंडी (रामगढ़), डॉ गोविंद गज़ब (रायबरेली), करुणा कलिका व अरुण पाठक (बोकारो) ने हास्य-व्यंग्य, प्रेम, राजनीति, मानवीय संवेदनाओं पर केंद्रित रचनाओं का पाठ कर श्रोताओं को घंटों बांधे रखा।

कवि सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि बोकारो विधायक व झारखंड विधानसभा के मुख्य सचेतक (विरोधी दल) बिरंची नारायण, विशिष्ट अतिथि मिथिला सांस्कृतिक परिषद्, बोकारो के अध्यक्ष अनिल कुमार, मिथिला एकेडमी पब्लिक स्कूल के अध्यक्ष हरि मोहन झा, उपाध्यक्ष जय प्रकाश चौधरी चौधरी, सचिव पी के झा चंदन, मिथिला महिला समिति की अध्यक्ष सीमा झा व आमंत्रित कवियों ने मां सरस्वती की तस्वीर पर माल्यार्पण व पुष्पार्चन के बाद संयुक्तरुप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

विधायक को पुष्प गुच्छ भेंटकर व शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। रेणु प्रसाद व काजल भालोटिया ने कवियों को शॉल व मोंमेंटो भेंटकर सम्मानित किया।

कार्यक्रम की शुरुआत कवयित्री करुणा कलिका ने सरस्वती वंदना सुनाकर की। कवि बादशाह प्रेमी ने ‘सामने बड़ाई पीठ पीछे जो बुराई करे, शत्रु है महान भेद उसे ना बताइये/चोर, चापलूस हो, गंवार या नशेड़ी को, चौखट के भीतर ना इनको बुलाइये..’ सहित अन्य चुटीली रचनाओं से सबकी दाद पाई। कवि पवन बांके बिहारी ने ‘एक अनोखा और अजूबा प्रेम, पूरी मानव जाति को छल रहा था/मेढ़क सांप के गाल पर गुलाल मल रहा था..’, राकेश ओझा ने ‘एक विज्ञापन मैंने देखा कल सरकारी अखबार में/नीलाम को तैयार, बेचारी कलम दिखी बाज़ार में…’, कवि व शायर सरोज झा झारखंडी ने ‘मैं, अदब का सिपाही हूं, सबका एहतराम चाहता हूं/मैं सभी की खैरियत और सबका सलाम चाहता हूं…’, करुणा कलिका ने मैथिली में चंद पंक्तियां सुनाने के बाद हिन्दी गीत ‘अभी तो मुहब्बत का पहला चरण है…’, डॉ गोविन्द गजब ने ‘सब प्रेम से भरा हुआ मन ढूंढ़ रहे हैं/पतझड़ में भी खिलता सा चमन ढूंढ़ रहे हैं/रखने को मान प्रेम का सब जानते हुए/भगवान भी सोने का हिरन ढूंढ़ रहे हैं….’ व अध्यक्षीय काव्यपाठ करते हुए अरुण पाठक ने हिन्दी के महत्त्व को दर्शाती अपनी कविता ‘हिन्दी है हम सबकी भाषा, हिन्दी है जन-जन की भाषा/हिन्दी को सम्मान दिलाना हम सबकी उत्कट अभिलाषा…’ व मैथिली में सद्भावना गीत-‘जाति धर्म के नाम पर नहि बांटू इंसान के….’ सुनाकर सबकी भरपूर तालियां बटोरी।

धन्यवाद ज्ञापन हरि मोहन झा ने किया। इस अवसर पर गणेश चन्द्र झा, समरेन्द्र झा, बटोही कुमार, सुनील मोहन ठाकुर, मुकुल ओझा, पं बच्चन महाराज, डॉ रंजना श्रीवास्तव, जेपी झा, प्रीति प्रिया, प्रभात कुमार, डॉ श्रीहरि पांडेय, समीर स्वरुप गर्ग, क्रांति श्रीवास्तव, अनिल श्रीवास्तव, दिलीप कुमार, माला, जयंती पाठक, सोनी, गीता कुमारी, कौशल कुमार राय, अमरनाथ झा सहित काफी संख्या में काव्यप्रेमी श्रोता उपस्थित थे।

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