
रवीन्द्र कुमार ने कहा कि रफी साहब की गायकी अद्भुत थी। उनका जीवन संगीत के लिए ही समर्पित था। डाॅ राकेश रंजन ने कहा कि फिल्म संगीत में रफी साहब का योगदान सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। अरुण पाठक ने कहा कि मो. रफी अपनी बेमिसाल गायकी के लिए सदैव संगीत प्रेमियों के दिलों में रहेंगे। उन्होंने हर तरह के गीतों को बहुत ही संजीदगी से गाकर अमर कर दिया। राजेन्द्र विश्वकर्मा ने कहा कि मो. रफी के गाए गीत हमेशा गुनगुनाए जाते रहेंगे।
संगीत संध्या की शुरुआत ओमप्रकाश छोटू ने ‘तुझको पुकारे मेरा प्यार…’ व ‘छू लेने दो नाजुक होठों को…’ सुनाकर की। तत्पश्चात् अरुण पाठक ने ‘मैं कहीं कवि न बन जाऊं…’, ‘मुझको मेरे बाद ज़माना ढूंढ़ेगा…’, ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे…’ व ‘वो जब याद आए बहुत याद आए…’, रवीन्द्र कुमार ने पुकारता चला हूं मैं….’, ‘मुझे इश्क है तुझी से….’, आर के मिश्रा ने ‘आज पुरानी राहों से…’, ‘खुदा भी आसमां से…’, ‘खिलौना जानकर तुम तो…’, डाॅ कुन्दन ने ‘आज मौसम बड़ा बेईमान है…’, ‘ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं…’, उदीयमान गायक सहर्ष ने ‘ये रेशमी जुल्फें…’ व ‘इक बंजारा गाए जीवन का राग सुनाए…’ आदि गीतों की सुरीली प्रस्तुति से सबको आनंदित किया।