रांची : विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास झारखंड द्वारा पर्यावरण पर कोविड-19 का प्रभाव विषय पर ऑनलाइन परिसंवाद आयोजित किया गया। परिसंवाद की अध्यक्षता एलबीएसएम कॉलेज जमशेदपुर के प्राचार्य डॉ अमर सिंह ने किया। मुख्य वक्ता प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं केकेएम कॉलेज पाकुड़ के वनस्पति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ प्रसेनजीत मुखर्जी ने उक्त विषय पर अपने विचार साझा किए।
मुख्य वक्ता डॉ प्रसेनजित मुख़र्जी ने राष्ट्रीय शिक्षा उत्थान न्यास संस्थान झारखण्ड के वेनिनार में शामिल प्रबुद्धजनो के समक्ष उद्बोधन में कहा कि कोविड़-19 ने जहां एक ओर दुनिया भर में कई विकट चुनौतियां पैदा की हैं, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक सौंदर्य के अद्भुत व जीवंत नजारे भी देखने को मिल रहे हैं। इतिहास गवाह है कि अतीत में जब-जब इस प्रकार की भयानक महामारियां आई हैं, तब-तब पर्यावरण ने सकारात्मक करवट ली है। यकीनन कोरोना संक्रमण काल में प्रकृति का यह रूप मानवीय जीवन के लिए भले ही क्षणिक राहत वाला हो, परंतु जब संक्रमण का खतरा पूरी तरह खत्म हो जाएगा, तब क्या पर्यावरण की यही स्थिति बरकरार रह पाएगी? जब सभी देशों के लिए विकास की रफ्तार को तेज करना न केवल आवश्यक होगा, बल्कि मजबूरी भी होगी, तब क्या ऐसे कदम उठाए जाएंगे जो प्रकृति को बिना क्षति पहुंचाए सतत विकास की ओर अग्रसर हो सकेंगे इन बातों पर प्रकश डाला l
उन्होंने ने कहा कि इन पाबंदियों का एक नतीजा ऐसा भी निकला है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। अगर आप राजधानी दिल्ली से पड़ोसी शहर नोएडा के लिए निकलें, तो पूरा मंज़र बदला नज़र आता है। सुबह अक्सर परिंदों के शोर से खुलती है। जिनकी आवाज़ भी हम भूल चुके थे l कोरोना महामारी फैलते ही दुनिया के ज़्यादातर देशों में ज़िंदगी ठहर गई, कामधंधे रोक दिये गये, वाहनों, रेलगाड़ियों का चलना बन्द व उड़ानें ठप हो गईं। होटल, रेस्तंरा और क्लब बन्द कर दिये गये। ज़ाहिर तौर पर पर्यावरण में साफ बदलाव दिख रहा है। न केवल प्रदूषण कम है बल्कि तमाम अमीर और घने उद्योगों वाले देशों के कार्बन इमीशन तेज़ी से गिरे l
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ अमर सिंह ने कहा कि कोविड़-19 के कारण उत्पन्न राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण पर्यावरण पर काफी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। जल वायु और ध्वनि प्रदूषण में काफी कमी आई है। जहां गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाने के लिए सरकार को अभियान चलाने की जरूरत पड़ती थी वहां आज गंगा के प्रदूषण में 50% तक कमी आई है। लॉकडॉन के बीच गंगा में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड में भारी गिरावट आई है वहीं यमुना के प्रदूषण में भी 33% की कमी दर्ज की गई है। जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण की तरह ध्वनि प्रदूषण में भी भारी कमी आई है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ कविता परमार के द्वारा किया गया जबकि विषय प्रस्तावना प प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ गार्गी द्वारा प्रस्तुत किया गया।प्रश्न संवाद सरला बिरला विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापिका प्रो मेघा सिन्हा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ ललिता राणा के द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर संयोजक श्री अमरकांत झा, अध्यक्ष डॉ गोपाल जी सहाय, उपाध्यक्ष सह सरला बिरला विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ विजय कुमार सिंह, डॉ रंजीत कुमार, डॉ राधा माधव झा, डॉ संदीप कुमार, प्रो मेघा सिन्हा, भारद्वाज शुक्ल, अजीत कुमार मिश्रा, एसएन पाठक, डॉ राम पांडेय, डॉ निरंजन कुमार, डॉ अमृत कुमार के अलावे संपूर्ण झारखंड से कई गणमान्य बुद्धिजीवी शिक्षक, शिक्षाविद् उपस्थित थे।