# डॉ सन्तोष कुमार झा के कविता संग्रह ‘जन अरण्यक बीच’ का हुआ वर्चुअल लोकार्पण
बोकारो : शिक्षक व युवा कवि डॉ सन्तोष कुमार झा की पहली कविता पुस्तक ‘जन-अरण्यक बीच’ (मैथिली कविता संग्रह) नवारम्भ प्रकाशन, पटना/मधुबनी से प्रकाशित हुई है। कविता संग्रह ‘जन अरण्यक बीच’ का लोकार्पण रविवार को वर्चुअल (ऑनलाइन) किया गया। मुख्य अतिथि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशिनाथ झा, वरिष्ठ साहित्यकार गिरिजा नंद झा ‘अर्धनारीश्वर’, साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार व मुख्य वन संरक्षक,पलामू कुमार मनीष अरविन्द, साहित्यकार हितनाथ झा, बोकारो से एसआरयू के महाप्रबंधक व साहित्यकार हरि मोहन झा, कवि व गायक अरुण पाठक, मधुबनी से साहित्यकार व नवारम्भ प्रकाशन के निदेशक अजित आजाद, कोलकाता से युवा साहित्यकार रुपेश त्यौंथ, चंदन कुमार झा व कवि डॉ सन्तोष कुमार झा ने किया।
आरंभ में स्वागत परिचय अजित आजाद ने कराया। लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि कुलपति प्रो शशिनाथ झा ने कहा कि सन्तोष जी की कविताएं मर्मस्पर्शी होती हैं। इनकी खासियत है कि ये पुरानी चीजों को आधुनिकता की चासनी में लपेटकर कविता के रूप में बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत करते हैं। डॉ सन्तोष अपनी कविताओं में किसी पर प्रत्यक्ष आक्षेप किए बिना अपनी बात को सफलतापूर्वक संप्रेषित करते हैं। इनकी अधिकतर रचनाएं व्यंग्यपूर्ण हैं। कवि के रूप में इनकी ख्याति और बढ़े इसके लिए शुभकामनाएं।
कुमार मनीष अरविन्द ने अपने संबोधन में कवि के रूप में डा सन्तोष कुमार झा के विकास में रांची की साहित्यिक संस्था ‘संपर्क’ व बोकारो के ‘साहित्यलोक’ के योगदान की विशेष रूप से चर्चा की। उन्होंने कहा कि कवि का व्यक्तित्व कविता के रूप में बाहर आता है। कविताओं में सन्तोष जी की उपस्थापना का तरीका बहुत ही विशिष्ट है। इनकी कविताओं में धारदार व्यंग्य है और सामाजिक कुव्यवस्थाओं के खिलाफ सशक्त आवाज है। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि संतोष जी आनेवाले समय में मैथिली साहित्य के एक सशक्त कवि के रूप में सामने आयेंगे।
अर्धनारीश्वर ने कहा कि कवि संतोष की रचनाओं में विविधता है और अभिव्यक्त करने का अंदाज बहुत ही विशिष्ट है। चंदन कुमार झा ने कहा कि इनकी कविताओं में सामाजिक चेतना व विसंगतियों के प्रति प्रतिरोध के स्वर हैं। सरल भाषा में मार्मिक बात कहने की अद्भुत क्षमता है। शब्दों का चयन भी प्रशंसनीय हैं। रुपेश त्यौंथ ने कहा कि इनकी कविताओं में प्रकृति, संस्कार, मानवीय संवेदना सहित कश्मीर व समसामयिक विषयों का भी समावेश है। इनकी कविताएं विकास का एक दस्तावेज है। अजित आजाद ने कहा कि संतोष जी का यह प्रथम कविता संग्रह पहले में खिलाड़ी द्वारा शतक लगाने जैसा है।
हितनाथ झा ने कहा कि संतोष जी की कविताएं विविधतापूर्ण व मर्मस्पर्शी हैं।हरिमोहन झा ने कहा कि कवि में खोजी पत्रकार के गुण हैं। इनकी कविताओं में तीक्ष्ण व्यंग्य है। अंत में कवि डॉ संतोष कुमार झा धन्यवाद ज्ञापन किया।