– डॉ. ए. एस. गंगवार
प्राचार्य, डीपीएस बोकारो -सह-अध्यक्ष, डॉ. राधाकृष्णन सहोदया स्कूल कॉम्प्लेक्स, बोकारो
शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान और परीक्षाओं में अच्छे अंक लाना ही नहीं है। शिक्षा सही मायने में तभी सार्थक मानी जाती है जब पढ़ाई के साथ-साथ एक विद्यार्थी का समग्र विकास हो और वह अपने जीवन में एक सफल नागरिक बन सके। इसके लिए विद्यालय सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। तभी तो इसे महज शिक्षा का केन्द्र नहीं, बल्कि ज्ञान का मंदिर कहा जाता है। ज्ञान का अर्थ ही है समग्र रूप से बच्चों का बौद्धिक, शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक विकास। विद्यालय ही वह स्थान है, जहां शिक्षक विद्यार्थियों में इन सभी आवश्यक गुणों का विकास कर इसके माध्यम से देश का भविष्य गढ़ते हैं। लेकिन, महज कुछ अर्थोपार्जन के लालच में पड़कर बच्चों के भविष्य के साथ धोखाधड़ी अत्यंत चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है। डमी स्कूलिंग की संस्कृति इसी प्रकार के फर्जीवाड़े का एक ज्वलंत उदाहरण है। आश्चर्य की बात है कि विद्यार्थी और उनके अभिभावक झांसे में आकर इस गंभीर समस्या के प्रति संजीदा नहीं हो पा रहे। इस साल जेईई मेन में अव्वल आए एक छात्र का मामला भी इन दिनों सुर्खियों में है, जिसने उस तथाकथित स्कूल का सहारा लिया, जिसकी मान्यता पिछले ही साल रद्द हो चुकी थी।
‘धोखाधड़ी’ पर हाईकोर्ट की सख्ती
वास्तव में डमी स्कूल देश में स्कूली शिक्षा प्रणाली को कमजोर कर रहे हैं। यदि यह अनुचित शिक्षा प्रणाली अनियंत्रित हो गई, तो समग्र शिक्षा व्यवस्था में गिरावट की संभावना से हरगिज इनकार नहीं किया जा सकता। इसके परिणामस्वरूप स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था चौपट होने लगेगी। यही कारण है कि हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में चल रहे डमी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने इसे ‘धोखाधड़ी’ बताया और कहा कि ऐसे स्कूलों को अनुमति नहीं दी जा सकती, जो छात्रों को केवल कोचिंग क्लासेस में भेजते हैं और परीक्षा में बैठने की अनुमति देते हैं, जबकि यह जानकारी पूरी तरह से झूठी होती है। कोर्ट ने राज्य सरकार और सीबीएसई को इस संबंध में जांच करने का आदेश दिया। एक याचिका की सुनवाई में हाईकोर्ट का स्पष्ट कहना था कि डमी स्कूल जिस तरह से बे-बेरोकटोक चल रहे हैं, उससे उन विद्यार्थियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, जो रेगुलर स्कूल में पढ़ाई करते हैं। वो राज्य कोटा के जरिए इंजीनियरिंग, मेडिकल और दूसरे बड़े संस्थानों में एडमिशन लेने से वंचित रह जाते हैं। यह न केवल शिक्षा के नियमों के खिलाफ है, बल्कि सीबीएसई के 75 प्रतिशत अटेंडेंस के नियम का भी सीधा उल्लंघन है।
अभिभावक भी जिम्मेदार
डमी स्कूलिंग में विद्यार्थी स्कूलों में कक्षाएं नहीं करते, बल्कि कोचिंग सेंटरों में समय बिताते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे स्कूल कोचिंग संस्थानों के लिए मात्र एक बिचौलिया हैं, जहां स्टूडेंट को एडमिशन तो मिल जाता है, परंतु उसे रोज स्कूल जाना नहीं पड़ता। बच्चे जेईई मेन, जेईई एडवांस और नीट जैसी परीक्षाओं की तैयारी करानेवाले कोचिंग संस्थानों तक ही सिमटे रह जाते हैं। दरअसल, इसमें केवल कोचिंग सेंटरों की गलती नहीं हैं, इसके लिए पेरेंट्स भी उतने ही जिम्मेदार हैं। वे खुद चाहते हैं कि उनका बेटा या बेटी स्कूल में क्लासेज अटेंड न करे, बल्कि कोचिंग जाए, ताकि नीट और आईआईटी में जा सके, इसलिए पेरेंट्स खुद स्कूलों पर प्रेशर डालते हैं। देश के विभिन्न शहरों में ऐसे कई स्कूल हैं, जो हर महीने इस काम के लिए अतिरिक्त 50 फीसदी तक चार्ज करते हैं। मसलन, जिन स्कूलों में 60,000 एनुअल फीस है, वहां अभिभावक बच्चे को स्कूल न जाना पड़े, इसके लिए 90,000 रुपए की रकम चुकता करते हैं।
जन-जागरुकता जरूरी
वस्तुतः, नन-स्कूलिंग या डमी स्कूलिंग कहीं से भी बच्चे के लिए हितकर नहीं है। विद्यालय में नियमित कक्षाओं से ही उनका सर्वांगीण विकास संभव है, जहां उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ खेल, कला, संगीत सहित तमाम विधाओं में पारंगत बनाया जाता है। सीबीएसई की ओर से डमी स्कूलिंग के विरुद्ध की जा रही कार्रवाई न केवल जरूरी, बल्कि सराहनीय भी है। जानकारी के मुताबिक देशभर में 300 से अधिक डमी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। लेकिन, इस दिशा में विद्यार्थियों और अभिभावकों को भी जागरूक होकर आगे आना होगा। उन्हें रेगुलर स्कूलिंग की अहमियत समझनी होगी, नहीं तो ऐसी फर्जी व्यवस्थाएं हमारी शिक्षण-प्रणाली को धीरे-धीरे खोखला कर देंगी, इसमें कोई संदेह नहीं।