पर्वतों के संरक्षण का संदेश देती गोवर्धन पूजा 

लेखक: डा मनमोहन प्रकाश

गोवर्धन पूजा भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। इस पूजा का संबंध भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने की कथा से है। वास्तव में गोवर्धन पर्वत पूजा एक प्रतीकात्मक संदेश है कि यदि हमें प्रकृति के प्रकोप से, आपदाओं से बचना है तो हमें प्रकृति के सभी जैविक एवं अजैविक घटकों,प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से पर्वतों, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं और नदियों आदि की चिंता करनी होगी,सोज समझ कर उनका उपयोग करना होगा और सहजने के प्रयास करने होंगे । पर्वत न केवल जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बल्कि जल स्रोतों का उदगम स्थल बनते हैं तथा संरक्षण भी करते हैं।

आज के समय में, जब जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण सहित कई पर्यावरणीय समस्याएं  बढ़ रही हैं, गोवर्धन पूजा के माध्यम से प्रकृति के सभी घटकों के संरक्षण का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है,अर्थात हमें पर्वतों के संरक्षण, वृक्षारोपण, देखभाल के साथ उनका मानव जनित प्रदूषण ,खनन और अनावश्यक हस्तक्षेप से बचाने को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक संतुलित और स्वस्थ पर्यावरण बना रहे तथा उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश जैसे घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचा जा सके।

वैसे तो पर्वतों के तड़कने और ढहने के पीछे मुख्य रूप से भूगर्भीय प्रक्रियाएँ और पर्यावरणीय कारक जिम्मेदार होते हैं जैसे(1) प्लेट टेक्टॉनिक्स का आपस में टकराना,(2) भूकंप, (3) अपरदन,(4) अत्यधिक बारिश,( 5) जलवायु परिवर्तन के कारण पर्वतीय ग्लेशियर का पिघलना आदि, किन्तु  मानवीय हस्तक्षेप- (1) जंगलों की कटाई, (2) अनियंत्रित खनन एवं निर्माण, (3) अत्याधिक पयर्टन गतिविधियों को कम उत्तरदाई नहीं माना जा सकता।

अतः इस त्यौहार का वैज्ञानिक संदेश यही है कि पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना और मानवीय हस्तक्षेप को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है साथ ही आवश्यक है- (1) वन संरक्षण और विस्तार (2) जल निकासी की उचित व्यवस्था, (3) खनन और निर्माण गतिविधियों पर नियंत्रण (4) संरचनात्मक उपाय जैसे-भू-रिटेनिंग वॉल्स ,स्लोप स्टेबिलाइजेशन नेटिंग , टेर्रेसिंग, (5) जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन घटाने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने पर बल, (6) प्राकृतिक भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना। (7) पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा ।

इस प्रकार हम कह सकते हैं गोवर्धन पूजा हमें पर्वतों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सतर्क और जिम्मेदार बनाती है। प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने, पर्यावरणीय संरक्षण के प्रयास करने, और मानवीय गतिविधियों पर नियंत्रण करने पर बल देती है। गोवर्धन पूजा में निहित यह भाव न केवल प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में मदद करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्थायी पर्यावरण सुनिश्चित करेगा तथा उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश जैसे घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचाने में सहायक होगा।

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