– डा.मनमोहन प्रकाश
इंदौर : सत्य, अहिंसा, धर्म, त्याग , तप, परोपकार के साथ अच्छे जीवन उपयोगी संस्कार और संस्कृति से पोषित तथा प्रकृति सम्मत जीवन शैली को महत्व देने वाला भारत का सनातन धर्म सबसे समृद्ध है और वैज्ञानिक भी।शायद ही कोई भारतीय इस विचार से असहमत हो। प्रत्येक बारह वर्षों में भारत के गंगा, यमुना, और सरस्वती नदी के संगम स्थल प्रयागराज पर आयोजित होने वाला कुंभ(2025 में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक) करोड़ों हिन्दुओं के लिए,सनातन में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों के लिए एक धार्मिक अनुष्ठान, आस्था का मेला , सनातन संस्कृति को विस्तार देने वाला एक आयोजन मात्र नहीं है अपितु भारतीय ऋषियों की ज्ञान परंपरा के विभिन्न पहलुओं के प्रचार-प्रसार तथा वैश्विक पहचान दिलाने का माध्यम है, उन्हें बहुत करीब से जानने, समझने, सीखने तथा आत्मसात करने का “खुला विश्वविद्यालय” है।
इस महाकुंभ में भी पूर्व कुंभों(प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन,नासिक) की तरह विभिन्न मठ, अखाड़ों, धर्म संगठनों,न्यास आदि द्वारा साधु-संतों, तपस्वियों, धर्माचार्यों और विद्वानों को उनकी संगठनात्मक योग्यता, सनातन धर्म आधारित ज्ञान तथा उसके प्रचार-प्रसार की क्षमता, तप और आध्यात्मिक साधना आदि के आधार पर विविध उपाधियां दी जा सकती है, जैसे -आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, शंकराचार्य, महंत, अवधूत, परमहंस,नागा साधु, वेदांताचार्य, योगेश्वर, धर्म-चक्रवर्ती, तपोनिष्ठ, सिद्ध- योगी, धर्मगुरु आदि।ज्ञान के इस अनोपचारिक शिक्षण संस्थान(कुंभ) में प्रवेश के लिए न तो किसी अर्हतादायी परीक्षा पास होने की बाध्यता है, न ही जाति, धर्म, लिंग, भाषा का बंधन है और न ही धन की आवश्यकता है।
इस शिक्षास्थली से ज्ञानार्जन के लिए यदि किसी चीज की आवश्यकता है, तो वह है स्वयं के द्वारा चयनित गुरु के प्रति आस्था, विश्वास और समर्पण।मेरा ऐसा मानना है कि भारतीय ज्ञान परंपरा की इस शिक्षास्थली से ज्ञानार्जन करने वाला आम और खास व्यक्ति जीवन उपयोगी लौकिक एवं पारलौकिक विषयों पर सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है, देश, समाज और स्वयं की उन्नति की राहें आसान कर सकता है तथा मानव जन्म को सार्थक बना सकते हैं।
भारतीय ज्ञान परंपरा की दृष्टि से 2025 का महाकुंभ विशेष है और महत्वपूर्ण है।महाकुंभ में कल्पवासी, स्नानार्थी, श्रद्धालु, शिष्य, पर्यटक आदि सभी को साधु-संतों, ऋषि-मुनियों , विद्वानों और दार्शनिकों के श्रीमुख से ईश्वरीय चरित्र , ज्ञान-सत्ता और भक्ति का साक्षात्कार करने, समाज में अपनी भूमिका सुनिश्चित करने,जीवन में खुशियां और शांति प्राप्त करने की विभिन्न पद्धतियों, विचारधाराओं को करीब से देखने,समझने और आत्मसात करने का अवसर प्राप्त हो सकता है। विभिन्न मठ, मंदिर , साधु-संतों के पंडालों आदि में आयोजित होने वाले विचार विमर्श/सत्संग/संगोष्ठी/कार्यक्रम/स्वाध्याय आदि के माध्यम से पूजा-पाठ, भक्ति, उपासना, साधना,यज्ञ, योगासन , प्राणायम, ध्यान आदि के महत्त्व को जाना जा सकता है तथा इनकी पद्धतियों/विधियों की प्रायोगिक कला को भी सीखा जा सकता है।
इतना ही नहीं समाज को एकजुट, उन्नतशील रखने की आवश्यकता से लेकर इन लक्ष्य को प्राप्त करने के तौर-तरीकों, तथा समाज में व्याप्त अंधविश्वास, कुरितियां से होने वाले नुकसान से लेकर उनसे बचने के उपायों तक पर कुंभ के विभिन्न आयोजनों में खुली चर्चा होती है, मार्ग निकलता है।इसी तरह देश की युवा पीढ़ी पर,राष्ट्र पर, सनातन धर्म पर कौन-कौन से ख़तरे मंडरा रहे हैं, उनसे कैसे बचा जा सकता है, भारत को विकसित राष्ट्र के साथ पुनः विश्वगुरु कैसे बनाया जा सकता है आदि विभिन्न विषयों पर मंथन और विमर्श इस तरह के आयोजन को न सिर्फ विशिष्ट बनाते है, अपितु प्रासंगिक भी बनाते हैं।
कुंभ में होने वाले साधु-संतों एवं धर्माचार्यों के व्याख्यान,प्रवचन, उपदेश और वेदांत चर्चा भारतीय दर्शन को गहराई से समझने में मदद करते हैं।
कुंभ में लगने वाले आयुर्वेद और योग के शिविर न केवल पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को प्रोत्साहित करते हैं, विस्तार देते हैं अपितु लाखों लोगों को स्वास्थ्य लाभ भी उपलब्ध कराते हैं।ज्योतिष और भविष्य वाणियों पर भी इस तरह के आयोजनों में विचार-विमर्श होता है।
वेद, पुराण, गीता, रामायण/रामचरितमानस, उपनिषद, भागवत जैसे अनेकों धार्मिक ग्रंथो में छुपे विभिन्न नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक पहलुओं के बारे में आचार्यों, महा-मंडलेश्वरों , धर्माचार्यों, कथावाचकों, विद्वानों आदि से श्रोताओं/श्रद्धालुओं/शिष्यों को रोचक,सरल,सहज और समझ में आने वाली भाषा में प्रमाणिक ज्ञान प्राप्त होता है। सनातनी धार्मिक ग्रंथो के प्रति आस्था बढ़ती है, इनमें समाहित गूढ़ रहस्यों को जानने के प्रति आकर्षण पैदा होता है जो भविष्य में विमर्श और शोध का हेतु बनता है।
कुंभ से विभिन्न विषयों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप प्राप्त होने वाला ज्ञान और शिक्षा मनुष्यों को जीवन जीने की कला और धर्म के व्यावहारिक पक्ष से परिचित कराती है तथा आधुनिक ज्ञान और विज्ञान के प्रति भी जागरूकता पैदा करती है।
पूर्व में आयोजित कुंभ नवाचार,सामाजिक सुधारों और बदलावों का वाहक रहे हैं फिर चाहे किन्नर समाज के अखाड़े को मान्यता देना हो या फिर किन्नर तथा नारी शक्ति को महामंडलेश्वर के रूप में स्वीकारना आदि हो। 2025 के कुंभ में भी कई नवाचार देखने और सुनने को मिल सकते हैं।
महाकुंभ जैसे आयोजनों में सामाजिक एकता और समरसता,लोक कलाओं और लोक संस्कृति पर केवल चर्चा ही नहीं होती अपितु उसके साक्षात दर्शन भी होते हैं। विभिन्न जाति, धर्म, भाषा के लोगों को बिना भेद-भाव के स्नान, ध्यान, भोजन, भजन,कीर्तन करते हुए एकसाथ देखा जा सकता है।
कुंभ में गुरुकुल परंपरा को भी करीब से अनुभव किया जा सकता है।यहां संत और महात्माओं को अपने शिष्यों को वाचिक परम्परा के माध्यम से वेद, उपनिषद, योग, आयुर्वेद और शास्त्रों आदि के ज्ञान को सहजता से स्थानांतरित करते हुए देखा जा सकता है।
महाकुंभ 2025 में पर्यावरण प्रदूषण, सांस्कृतिक प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और नदी संरक्षण जैसे आधुनिक मुद्दों तथा विभिन्न सामाजिक विषयों पर भी चर्चा होने की संभावना है। पिछले उज्जैन कुंभ में भी ‘विचार कुंभ’ का आयोजन किया गया था, जिसमें विद्वान, आचार्य , धर्माचार्यों, महामंडलेश्वरों आदि ने विभिन्न समसामयिक विषयों पर अपने विचार रखे, जिसे श्रोताओं ने बहुत सराहा।
डिजिटल क्रांति के युग में महाकुंभ का स्वरूप भी बदल रहा है।2025 में आयोजित हो रहे महाकुंभ में डिजिटल तकनीक और माध्यमों के साथ-साथ आधुनिक एआई तकनीक का उपयोग कर देश-विदेश के करोड़ों लोगों को इससे जोड़े जाने की संभावना है। मेले के प्रबंधन , प्रतिभागियों को सुरक्षा और सुविधा उपलब्ध कराने में, भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को वैश्विक स्वरूप प्रदान करने में भी डिजिटल तकनीक के बढ़-चढ़कर उपयोग होने की संभावना है। ऑनलाइन मंचों से लाइव स्ट्रीमिंग, वर्चुअल चर्चाएं, और डेटा विश्लेषण भी इस वर्ष के महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं।
कुंभ जैसे आयोजन विश्व को सर्वधर्म समभाव: के साथ “वसुधैव कुटुंबकम्” का संदेश देते हैं। भारत की भूमि में आयोजित होने वाले इस तरह के आयोजन यह समझाने में भी सफल होते हैं कि अध्यात्म और विज्ञान एक दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। दोनों मिलकर मानवता को नई दिशा दे सकते हैं। भारतीय ज्ञान केवल अतीत की धरोहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि भविष्य के लिए भी प्रकाश पुंज है।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा की ओपन यूनिवर्सिटी है, जो हर स्तर के व्यक्तियों के लिए ज्ञान के भण्डार में से कुछ सीखने, समझने, और आत्मसात करने का मंच प्रदान करती है। इस तरह के आयोजन न केवल भारत की प्राचीन विरासत को जीवित रखे हुए है, बल्कि आधुनिक समाज को भी प्रेरणा देते हैं। महाकुंभ 2025 सनातन गुरुकुल परंपरा, आधुनिक ज्ञान, विज्ञान, और अध्यात्म तीनों को एक साथ लाने वाला अद्भुत मंच है जहां प्राचीन और आधुनिक विचारधाराएं एक दूसरे के साथ सामंजस्य स्थापित करती दिखाई देने वाली है। मुझे संगम तट पर आयोजित हो रहा भव्य और दिव्य महाकुंभ का आयोजन सनातन ज्ञान,धर्म, लोककला, संस्कार, संस्कृति, परंपरा और मूल्यों से वैश्विक मानव समाज को परिचित कराने के खुले विश्वविद्यालय के रूप में नजर आ रहा है।
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