नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आज दोपहर 2 बजे वक्फ (संशोधन) कानून 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। आज की सुनवाई में मुख्य तौर पर अंतरिम आदेश (इंटरिम ऑर्डर) को लेकर बहस होगी।
कल, चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच — जिसमें जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल हैं — ने तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अंतरिम आदेश देने की बात कही थी। लेकिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अन्य वकीलों के आग्रह पर कोर्ट ने सुनवाई आज तक टाल दी।
कोर्ट की ओर से सुझाए गए तीन अंतरिम निर्देश:
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वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को कोर्ट की सुनवाई के दौरान वक्फ से डीनोटिफाई नहीं किया जाएगा, चाहे वो वक्फ-बाय-यूज़र हों या वक्फ-बाय-डीड।
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संशोधन कानून में जो प्रावधान है कि यदि कलेक्टर किसी संपत्ति की सरकारी ज़मीन होने की जांच कर रहा है, तब तक उसे वक्फ नहीं माना जाएगा — उसे लागू नहीं किया जाएगा।
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वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुसलमान होंगे, सिर्फ़ एक्स-ऑफिसियो सदस्य को छोड़कर।
73 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर
कानून के खिलाफ कुल 73 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं में कई बड़े नेता, धार्मिक संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं।
यह कानून इस महीने संसद से पास हुआ था और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद यह लागू हो गया। सरकार का दावा है कि इस कानून से वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता आएगी, लेकिन विरोध करने वालों का कहना है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल किया है, ताकि कोर्ट किसी भी अंतरिम राहत पर फैसला लेने से पहले उसकी बात जरूर सुने।
केंद्र सरकार के पक्ष में उतरे 7 राज्य
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तराखंड सरकारें इस कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं। उनका कहना है कि ये कानून संविधान सम्मत है और वक्फ व्यवस्था में सुधार के लिए जरूरी है।
किस-किस ने कानून को दी चुनौती?
राजनीतिक नेता:
AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्ला खान, TMC सांसद महुआ मोइत्रा, RJD सांसद मनोज झा और फैयाज अहमद, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद आदि।
धार्मिक संगठन:
समसथा केरल जमीअतुल उलेमा, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद (अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी) प्रमुख धार्मिक संगठनों में शामिल हैं।
राजनीतिक दल:
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, CPI, वाईएसआर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तमिलगा वेत्त्रि कषगम, RJD, JDU, AIMIM, AAP और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी समर्थन दिया है।
अन्य याचिकाकर्ता:
हिंदू पक्ष से अधिवक्ता हरी शंकर जैन और नोएडा निवासी पारुल खेरा ने भी याचिकाएं दाखिल की हैं। उनका कहना है कि इस कानून से सरकारी और हिंदू धार्मिक ज़मीनों पर अवैध कब्जा बढ़ सकता है।
याचिकाकर्ताओं की मुख्य आपत्तियां
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वक्फ बोर्ड चुनाव रद्द करना: इससे मुस्लिम समुदाय की लोकतांत्रिक भागीदारी प्रभावित होती है।
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गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: धार्मिक मामलों में समुदाय की स्वायत्तता पर असर पड़ता है।
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वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा कमजोर: खासकर बिना दस्तावेज़ वाली संपत्तियों की स्थिति कमजोर हो जाती है।
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जनजातीय समुदाय को वक्फ बनाने से रोकना: इसे भेदभावपूर्ण बताया गया है।
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सरकारी दखल का खतरा: कार्यपालिका को अधिक शक्ति देने की बात की गई है।
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ऐतिहासिक धरोहरों पर असर: वक्फ दर्ज ऐतिहासिक संपत्तियों को नुकसान हो सकता है।
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राज्य वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता में कटौती: 35 संशोधनों से नियंत्रण केंद्र सरकार की ओर झुकता दिख रहा है।
क्यों अहम है आज की सुनवाई?
धार्मिक और संपत्ति अधिकारों पर असर डालने वाले इस कानून को लेकर आज की सुनवाई बेहद अहम मानी जा रही है। कोर्ट के फैसले से भारत में धर्मनिरपेक्ष शासन व्यवस्था और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर बड़ी दिशा तय हो सकती है।