# भारतीय सभ्यता-संस्कृति का बेड़ा गर्क कर रहे फूहड़ संगीत, लोग इसे नकारें
बोकारो। देश के विश्वविख्यात वायलिन वादक उस्ताद जौहर अली खान का कहना है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत दुनियाभर के समस्त संगीत का मूल आधार है। यह कभी नहीं बदल सकता। अजर-अमर और अटल है। जिस प्रकार देवी-देवता हमारे लिए पूजनीय व अटल हैं, ठीक उसी प्रकार शास्त्रीय संगीत हमारी आस्था से जुड़ा है, जिसका कोई भी बाल-बांका नहीं कर सकता। मंगलवार को डीपीएस (दिल्ली पब्लिक स्कूल), बोकारो में स्पिक मैके की ओर से आयोजित अपने कार्यक्रम को लेकर पहुंचे उस्ताद जौहर ने एक खास बातचीत में ये बातें कहीं।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि संगीत के क्षेत्र में भी बच्चे अपना अच्छा भविष्य बना सकते हैं। इसके प्रति बच्चों में रुचि जगाने के लिए स्कूल-कॉलेज से बेहतर कोई जगह नहीं। भारतीय संगीत आगे बढ़े, इसी उद्देश्य से वह स्पिक मैके के साथ होकर स्कूल-कॉलेजों में जा-जाकर देश में एक अलख जगा रहे हैं। पाश्चात्य संगीत के दुष्प्रभावों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हमारा शास्त्रीय संगीत एक ऐसी चीज है, जिसमें मिलावट नहीं हो सकती। आज के जमाने के अधिकतर गाने कुछ दिन अच्छे लगते हैं, फिर हम उन्हें भूल जाते हैं। वे क्षणभंगुर हैं। लेकिन, पुराने जमाने के गीत आज भी सदाबहार हैं, आगे भी रहेंगे। इसका कारण यह है कि उन गानों में मेहनत थी, टीमवर्क था। समय, परिवेश, स्थिति-परिस्थिति, सबको ध्यान में रखकर गीत लिखे जाते थे, उसके अनुकूल ही संगीत दिया जाता था। आज ऐसी बात नहीं है। उन्होंने कहा- आज जिस प्रकार के फूहड़ गीत-संगीत बनाए जा रहे हैं, वे हमारी सभ्यता-संस्कृति का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। मेरी देशवासियों से दर्ख्वास्त है कि इन्हें अवॉयड करें।
एक अन्य सवाल के जवाब में उस्ताद जौहर ने कहा कि आज के दौर में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर आधारित संगीत और इलेक्ट्रॉनिक तकनीक के अपने दायरे हैं। यकीनन, तकनीक ने संगीत के लिए भी सुविधाएं दी हैं, परंतु मशीनी संगीत से मूल संगीत को कतई कोई चुनौती नहीं है। वायलिन साज के बारे में उन्होंने कहा कि यह हमारे शास्त्रों में पिनाकी वीणा के रूप में वर्णित है। यह सारंगी आदि के परिवार से जुड़ा है। केवल भारत ही ऐसा देश है, जहां दो शास्त्रीय संगीत शैली हैं- एक हिन्दुस्तानी और दूसरी कर्नाटक की। साउथ का संगीत तो वायलिन के बिना अधूरा है। बॉलीवुड गीतों को सिंफनी में संगीतबद्ध करने का यह आधार है। बच्चों में संगीत-विधा विकसित करने की दिशा में डीपीएस बोकारो के प्रयासों की सराहना करते हुए उस्ताद जौहर ने कहा कि बोकारो में संगीत और संस्कृति का अच्छा माहौल है। यहां एक अच्छे दर्जे के म्यूजिकल-कल्चरल इंस्टीट्यूट शुरू करने की जरूरत है, जिसमें बच्चों के साथ-साथ सभी उम्र के लोग प्रशिक्षण ले सकें।
पटियाला रामपुर घराने से ताल्लुक रखने वाले महान वायलिन वादक स्व. उस्ताद गौहर अली खान के सुपुत्र एवं शिष्य उस्ताद जौहर अली ने स्वच्छ भारत अभियान के लिए संगीत दिया है। स्वच्छ भारत व तंबाकू-निषेध कार्यक्रम के एम्बेसडर भी हैं। रुद्र वीणा वादन में भी पारंगत जौहर अली आगामी 21 जुलाई को दिल्ली में जी-20 देशों के सम्मेलन में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। इसके बाद 4 अगस्त को जापान के हिरोशिमा में शांति हेतु होनेवाले संगीत कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। रेडियो-दूरदर्शन के ए- ग्रेड आर्टिस्ट होने के साथ-साथ वह अच्छे गायक, संगीत-रचनाकार व लेखक भी हैं। फेस्टिवल्स आफ इंडिया, इंडोनेशिया, साउथ पैसिफिक गेम्स, फिजी और फ्रेंच मूवी के लिए भी वह संगीत कंपोज कर चुके हैं। अपनी विधा में उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूर्व राष्ट्रपति मिसाइलमैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी उनसे वायलिन-वादन के गुर सीख चुके हैं।
डीपीएस बोकारो में स्पिक मैके का विशेष संगीत कार्यक्रम आयोजित
बच्चों में संगीत के प्रति रुचि विकसित करने के उद्देश्य से मंगलवार को डीपीएस बोकारो में स्पिक मैके की ओर से विशेष संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विश्वप्रसिद्ध वायलिन वादक उस्ताद जौहर अली ने अपनी प्रस्तुतियों से समां बांध दिया।
वायलिन पर उनकी स्वर लहरियों और युवा तबलावादक अर्कोदीप दास के साथ उनकी जुगलबंदी ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। विद्यालय के अश्वघोष कला क्षेत्र में अपने कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने रूपक ताल में निबद्ध सुबह के राग अहीर भैरव से की। इस राग में आलाप, तान, गमक और तीन ताल में प्रस्तुति के बाद वायलिन और तबले के सवाल-जवाब (जुगलबंदी) का दौर आकर्षण का केंद्र रहा। संगीत की रूहदारी के साथ जिस बारीकी से उस्ताद जौहर ने अपनी कलाकारी के जौहर दिखाए, उसने सभी का मन मोह लिया।
उनके साथ तबले पर अर्कोदीप की कुशल संगत भी काबिले-तारीफ रही। इस दौरान पूरा विद्यालय परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान बना रहा।
कार्यक्रम में उपस्थित बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत व रागों की महत्ता से परिचित कराते हुए उन्होंने सरगम के सात सुरों की जानकारी दी। बच्चों ने भी उनके वादन के साथ सुर में सुर मिलाकर संगीतमय वातावरण में और आनंद-रस घोल दिया। उन्होंने रघुपति राघव राजा राम…, अच्युतम केशवम…, दमादम मस्त कलंदर गीतों की धुन बजाकर शास्त्रीय संगीत को और बेहतर बनाने में सूफी संगीतज्ञों की भूमिका पर प्रकाश डाला।
इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान सहित विभिन्न राज्यों की पारंपरिक लोकधुनें बजाईं और बच्चों को उनकी पहचान करने को कहा। इस सत्र के उपरांत उस्ताद जौहर ने अपने पिता एवं गुरु सुविख्यात वायलिन वादक स्व. गौहर अली के द्वारा बजाई गई रेडियो पर प्रसारित होने वाली धुन बजाकर उनकी जयंती पर अपनी स्वरांजलि अर्पित की। इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने सारे जहां से अच्छा… की धुन बजाकर अपने कार्यक्रम को विराम दिया।
इसके पूर्व, उत्साहपूर्ण वातावरण में उस्ताद जौहर एवं अर्कोदीप का स्वागत पौधा भेंटकर किया गया। बच्चों ने तालियों की गूंज के साथ गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। विद्यालय की ओर से उन्हें स्मृति-चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया। विद्यालय के प्राचार्य डॉ. ए एस गंगवार ने अपने संदेश में कहा कि संगीत मन, मस्तिष्क, हृदय और आत्मा को आनंदित करने का माध्यम है। तनाव-मुक्ति के साथ-साथ बच्चों के बौद्धिक विकास में भी यह सहायक है। डीपीएस बोकारो अपने विद्यार्थियों को संगीत-कला से जोड़ने का हर अवसर उपलब्ध कराने तथा उनकी प्रतिभा निखारने की दिशा में प्रतिबद्ध है। आगे भी ऐसे प्रयास जारी रहेंगे। कला व संगीत के विकास में स्पिक मैके की भूमिका को अहम बताते हुए उन्होंने इसके प्रति आभार भी जताया।